विंध्य धाम तीर्थ स्थल- माता भगवती और विंध्य पर्वत की पौराणिकता

उत्तर प्रदेश राज्य का मिर्जापुर जिला प्राकृतिक रूप से जितना समृद्ध है पौराणिक रूप से भी वो उतना ही महत्व रखता है। इसी मिर्जापुर जिले से विंध्याचल पर्वत की श्रेणियाँ गुजरती है और इसी पर्वत श्रेणी पर माता विंध्याचल का ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर स्थित है। गंगा नदी के तट पर बसा ये नगर और माता का मंदिर सनातन परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
और ये एक ऐसा तीर्थ स्थल है जहां पर माता भगवती के मंदिर की जितनी प्रामाणिकता है उतनी ही प्रामाणिकता इस विंध्य पर्वत श्रेणी की भी है। तो आज इस लेख के जरिये है माता विंध्याचल और विंध्य पर्वत दोनों के संबंध मे प्रसंग बताएँगे।
मान्यता है कि विंध्य पर्वत एक ऐसा पर्वत है जो समय के साथ अपनी ऊंचाई बड़ाये जा रहा था दिन प्रतिदिन उसकी ऊंचाई बढ़ रही थी लोग जन, स्वयं देवता भी उसकी ऊंचाई को देखकर परेशान होने लगे। आखिर किसी पर्वत की ऊंचाई की कोई सीमा ही नहीं होगी तो फिर लोगों का आवागमन भी रुक जाएगा। लोगो को अपना मार्ग बदलना पड़ जाएगा।
इसके उपाय के लिए सभी देवताओं मे महर्षि दुर्वासा से मदद की प्रार्थना की। महर्षि दुर्वासा ने देवताओं को निश्चिंत किया कि वो कोई न कोई समाधान अवश्य निकालेंगे और उन्होने विंध्य पर्वत की ओर यात्रा शुरू की। जब महर्षि दुर्वासा विंध्य पर्वत के पास पहुंचे तो विंध्य पर्वत ने उन्हे प्रणाम किया महर्षि ने बोला हे विंध्य मुझे अपने किसी कार्य के लिए तुम्हारे उस पार यात्रा करनी है लेकिन तुम्हारी ऊंचाई को देखकर मै उस पार नहीं जा सकता। और अब मुझे इस यात्रा को रोक्न पड़ेगा।
इस पर विंध्या पर्वत ने कहा हे गुरुवर आपकी इस यात्रा मे कोई भी अडचन नहीं आएगी अगर मेरी ऊंचाई बढ़ा बनती है तो मै झुक जाता हूँ और और आप उस पार चले जाइए तो महर्षि दुर्वासा ने कहा कि ठीक परंतु मेरे वापस आने तक तुम झुके ही रहना वापस उठना मत और इसके पश्चात विंध्य पर्वत साक्षात दंडवत की अवस्था मे एलईटी गया। और महर्षि दुर्वासा उसपार जाकर पुनः उस मार्ग से वापस नहीं आए और विंध्य पर्वत की लंबाई दुबारा नहीं बढ़ी।
माता विंध्यावासिनी के बारे मे भी मार्कन्डेय पुराण मे सम्पूर्ण विवरण है। उसमे बताया गया है कि महिशासुर के मर्दन के लिए माता भगवती ने विंध्याचल माता के रूप मे अवतरण लिया है इसी लिए इनकी गणना प्रसिद्ध शक्तिपीठों के रूप मे होती है।
साल मे पड़ने वाले दोनों नवरात्रि पर्व पर यहाँ बहुत ही ज्यादा संख्या मे भक्त आते है जिससे यहाँ पर दर्शन करना भी बहुत कठिन काम हो जाता है। नवरात्रि पर यहाँ माता की विशेष पुजा होती है। इन नौ दिनों मे लाखों की संख्या मे लोग आते है।
लोग यहाँ पर अपनी मान्यता पूर्ति के लिए आते है और मान्यता पूर्ति के उपरांत माता कोई स्वर्ण, चाँदी एवं अन्य धातु कि अपनी क्षमता अनुसार आँख दान करते है। उत्तर भारत के कुछ निवासी यहाँ चौल अथवा मुंडन संस्कार के लिए भी आते है।
विंध्याचल पहुँचने के लिए ट्रेन, हवाई, बस तीनों तरह की यात्रा सुलभ कुछ प्रमुख रेल्वे स्टेशन से विंध्याचल के लिए सीधी ट्रेन है वही आप वाराणसी स्टेशन से भी सड़क मार्ग से जा सकते है। इसके साथ ही वाराणसी एयरपोर्ट सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है साथ ही जौनपुर से सड़क मार्ग से भी यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है। वाराणसी से विंध्याचल की दूरी 60-65 किलोमीटर के लगभग है।
विंध्याचल की यात्रा के साथ साथ यहाँ के आस पास बहुत सारे प्राकृतिक जगहों का भी आनंद ले सकते है। यहाँ आस पास बहुत सारे जल प्रपात हैं। जहां लोग जाते है। विंडम फाल खड़ंजा फाल और टांडा फाल इसके प्रमुख जलप्रपात है जो देखने लायक है।
यहाँ की यात्रा का प्लान करते समय साथ ही आप वाराणसी दर्शन का भी साथ प्लान कर सकते है। जिसमे आप विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, संकट मोचन मंदिर और विश्व प्रसिद्द सारनाथ मंदिर जहां बहगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के उपरांत अपना पहला ज्ञान लोगो को प्रदान किया था। एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का भी दर्शन कर सकते है।
!!इति शुभम्य!!