बच्चों को बनाएँ प्रहलाद ध्रुव और नचिकेता जैसा दृढ़ निश्चयी

बच्चों के अच्छे मानसिक विकास के लिए आवश्यक है कि उन्हे हम महान लोगो के बारे मे बताए। उन्हे उन लोगो की जिंदगी के बारे मे बताए जो आज हमारे समाज मे किसी स्थान या पहचान के मोहताज नहीं। बल्कि सदियों से जिनको याद रखा जा रहा है। और उनकी कहानियाँ प्रेरणादायक है सभी के लिए। आज हम बात करेंगे उन्ही मे से प्रहलाद ध्रुव और नचिकेता की जिनके दृढ़ निश्चय ने एक ऐसा मुकाम हासिल किया जो युगों युगों तक हमारे और समस्त जन के मन मस्तिष्क मे व्याप्त रहेगा। बच्चों को इन जैसे बालको और महापुरुषों के बारे मे बताना अति आवहसयक होता है इससे हम उनके मस्तिष्क और विचारों को एक अलग ही आयाम दे सकते है।
प्रहलाद- हिरण्यकश्यप की कथा बहुत ही प्रचलित है जो कि असुरों का राजा था और उसका संहार स्वयं भगवान विष्णु के अवतार नृसिंह भगवान ने किया था। और इसके भाई हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु के वराह अवतार ने किया था। इसी हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद ने विष्णु भक्ति मे वो स्थान प्राप्त किया जो युगों युगों से इस संसार मे प्रचलित है। अपने पिता के विरोध के उपरांत भी जिसने अपनी भक्ति का त्याग नहीं किया। अपनी बुआ होलिका द्वारा अग्नि मे जलाए जाने के उपरांत भी बिलकुल भी अडिग नहीं हुए और अपनी विष्णु भक्ति के मार्ग पर हमेशा टीके रहे।
अब यहा बात करे प्रह्लाद की तो इनहोने अपने दृढ़ निश्चय के जरिये कभी भी सत्य और ईश्वर भक्ति का साथ नहीं छोड़ा। और असुर कुल मे जन्म लेने के पश्चात भी बिलकुल भगवान विष्णु के महान भक्तों की श्रेणी मे आते है। इनहि के पौत्र राजा विरोचन के पुत्र राजा बलि भी एक महान भक्त माने गए। और इनके दृढ़ निश्चय के कारण ही स्वयं भगवान विष्णु को नृसिंह अवतार लिया। और उस हिरण्यकश्यप का वध किया जिसे वरदान प्राप्त था कि न तो उसे कोई नर मार सकता है और न ही पशु। न तो उसे घर के बाहर मारा जा सकता है और न ही घर के बाहर। न तो उसे किसी अस्त्र शस्त्र से मारा जा सकता है। और न ही उसे दिन मे मारा जा सकता है और न ही रात्री मे लेकिन प्रह्लाद के भक्ति ने भगवान विष्णु को अवतरित किया हिरण्यकश्यप के वध करने हेतु। तो प्रहलाद से हम सीख सकते है कि किस प्रकार इतनी यातनाए सहने के बाद भी उन्होने सत्य का साथ नहीं छोड़ा और ईश्वर भक्ति के मार्ग पर चलते रहे।
ध्रुव-उत्तानपाद जो कि मनु के छोटे पुत्र थे। और राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थी। पहली पत्नी का नाम सुनीति और दूसरी पत्नी का नाम सुरुचि था। दोनों से एक एक पुत्र थे। सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था। और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। राजा उत्तानपाद अपनी दूसरी पत्नी को बहुत ही प्रेम करते थे। और सुरुचि भी अपने बच्चे के हित का ही सोचती थी और ध्रुव से ईर्ष्या करती थी।
एक बार की बात है राजा उत्तानपाद अपने दूसरे बेटे उत्तम को अपनी गोद मे बिठाकर खिला रहे थे और इसे देखकर ध्रुव का मन भी अपने पिता के गोद मे बैठने का हुआ। और जैसे ही वो अपने पिता के गोद मे बैठने को बढा सुरुचि ने उसे दूर करते हुए कहा कि राजा कि गोद मे केवल उत्तम ही बैठेगा तुम जाकर किसी और कि गोद मे बैठो। ऐसी बात सुनकर ध्रुव का मन बहुत ही दुखी हुआ और उसने सभी बात अपनी माँ को बताई। उनकी माँ ने बताया अगर तुम्हें पिता के गोद मे बैठने को नहीं मिला तो उससे भी उच्च स्थान है ईश्वर का शरण उसे प्राप्त करो। और इतना सुनते ही ध्रुव जंगल मे घोर तपस्या के लिए चले गए। उन्हे नारद मुनि तक ने रोका लेकिन उनके दृढ़ निश्चय ने उन्हे रुकने नहीं दिया। और ताप के बल पर स्वयं भगवान विष्णु द्वारा उन्हे सबसे उच्च स्थान मिला आज भी ध्रुव तारे को हम उत्तर दिशा मे देखते है और स्वयं सप्तऋषि इनकी परिक्रमा करते हैं।
नचिकेता- नचिकेता के दृढ़ निश्चय ने उन्हे आगे चलकर महात्मा नचिकेता के रूप मे जाना। जिनहे स्वयं यमराज ने ब्रह्म ज्ञान प्रदान किया था। वाजश्रवा ऋषि के पुत्र नचिकेता थे। एक बार की बात है वाजश्रवा ऋषि ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। और यज्ञ की पूर्णाहुति के उपरांत उन्होने सभी ब्राह्मणों को भोज और दक्षिणा प्रदान किया जिसे देखकर नचिकेटे ने उनसे कि हम दक्षिणा मे क्या देते है। इसपर वाजश्रवा ऋषि ने बोला हम दक्षिणा मे अपनी प्रिय चीजें प्रदान करते है।
इस पर नचिकेता ने अपने पिता से कहा आपका सबसे प्रिय तो मई हूँ आप मुझे किसे प्रदान करेंगे। इस बात को सुनकर वाजश्रवा ऋषि ने इसे मज़ाक समझ कर इस बात को ताल दिया। लेकिन बालक नचिकेता ये प्रश्न बार बार अपने पिता से पूछते रहे क्रोध वश ऋषि के मुख से निकाल गया कि मै तुम्हें यमराज को दक्षिणा रूप मे दूंगा। और इस बात को पिता कि आज्ञा मानकर नचिकेता स्वयं यम्म्लोक पहुँच गए और द्वार पर यमराज का इंतजार करने लगे जब कई दिन बीतने के बाद यमराज को दिखा कि एक बालक उनके द्वार पर बहुत डीनो से बैठा है तो उन्होने वहाँ जाकर सारा प्रसंग जाना और नचिकेता से खुश होकर उनको तीन वरदान मांगने को कहा।
उन्होने वर के रूप मे अपने पिता के क्रोध को शांत करने की बात की तथा द्वितीय वर के रूप मे देवी देवता के रहस्य ज्ञान को जानने कि इच्छा की जिसे अग्नि ज्ञान के रूप मे भी जाना जाता है। और तृतीय ज्ञान के रूप मे उन्होने ब्रह्म ज्ञान को जानने की बात की जिसके बदले कई प्रलोभन यमराज ने नचिकेता को दिया लेकिन अंत मे उनके न मानने पर नचिकेता को ब्रह्म ज्ञान या एटीएम ज्ञान प्रदान किया। और आज भी नचिकेता बालक से महात्मा नचिकेता के रूप मे अजर अमर हो गए।
निष्कर्ष
आज के आधुनिक युग मे हम बच्चों को कई छीजे सिकहते है और उनके जीवन को उन बातों के जरिये अच्छा बनाने का प्रयास करते है। आधुनिकता के ज्ञान के साथ और मनोरंजन के साथ हमे अपने बच्चो को पौराणिक कथाओं तथा उसमे प्रसिद्ध बालकों के किस्सो के बारे मे बताना चाहिए। उन्हे अवश्य ही इससे कुछ न कुछ सीखने को मिलता रहता है। आज हमने प्रहलाद ध्रुव और नचिकेता के बारे मे जाना आने वाले लेखों मे हम और भी कई प्रसिद्ध बालकों के बारे मे जानेंगे। हमारी संस्कृति ऐसे किस्से कहानियों से भरी पड़ी है। और इसका लाभ हमे अपने बच्चो के चरित्र निर्माण मे अवश्य लेना चाहिए।