जिसे श्री राम मारना चाहते थे उसे हनुमान जी ने बचाया- कथा प्रसंग

आज हम आप लोगो को रामायण की एक बहुत ही अनुपम कथा बताएँगे। जिसमे किस प्रकार भक्ति के द्वारा आप भगवान को जीत सकते है उसके बारे मे बताया गया है। सच्ची भक्ति और सत्या के साथ के द्वारा आप भगवान के क्रोध को भी शांत कर सकते है। और भगवान अपने भक्तों का कभी भी अनजाने मे भी अहित नहीं कर सकते।
वैसे तो इस कथा को कुछ ग्रन्थों मे वर्णन किया गया है और वहीं कुछ राम महिमा का बखान करने वाले ग्रन्थों मे नहीं किया गया है। तो चलिये शुरू करते है इस कथा प्रसंग को।
बात उस समय की है जब रावण का संहार करने के पश्चात राम अयोध्या वापस आ गए और उनका भव्य राजतिलक होना था। सभी वानर रीछ वापस चले गए सिवाय हनुमान जी के।
काशी नरेश शकुंत को भी राजतिलक के लिए निमंत्रण दिया गया। बड़े उत्साह और हर्ष के साथ काशी नरेश ने अपनी सवारी लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। रास्ते मे एक जगह वन मे काशी नरेश के रथ का पहिया खराब हो गया।
और वो पहिया निकल कर एक यज्ञ कुंड मे जा गिरा और जिससे यज्ञ की अग्नि बुझ गई वो यज्ञ की स्थापना स्वयं महर्षि विश्वामित्र ने की थी। काशी नरेश शकुंत इस वाकये को देखकर भयभीत हो गए और वहाँ से आगे निकाल पड़े।
जब महर्षि विश्वामित्र का यज्ञ मे विघ्न पढ़ गया तो वो बहुत क्रोधित हो गए और सीधे अयोध्या के दरबार मे राम के पास पहुंचे और उनसे उनके यज्ञ मे विघ्न डालने वाले का वध करने का प्रतिज्ञ ले ली।
इधर काशी नरेश शकुंत भी बहुत भयभीत हो रहे थे और उन्हे समझ नहीं आ रहा था कि जब स्वयं श्री राम ही उनका वध करने की प्रतिज्ञ ले चुके है तो फिर उनकी रक्षा कौन करेगा और इसी विचार मे वो महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचे और उन्हे सम्पूर्ण प्रसंग बताया।
महर्षि ने बोला चूंकि तुमने जान बुझ कर यज्ञ मे विघ्न नहीं डाला है इसलिए तुम्हारा वध करना उचित नहीं होगा लेकिन यदि श्री राम ने महर्षि विश्वामित्र को वचन दे दिया है तो वो वो अपना वचन पूरा अवश्य करेंगे। इसलिए मई भी तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता लेकिन यदि हनुमान जी तुम्हारी रक्षा करने का प्रण ले तो तुम्हारी जान बच सकती है।
और इसके लिए तुम माता अंजना के पास जाओ और यदि उन्होने तुम्हारे प्राण बचाने का वचन दे दिया तो फिर हनुमान जी उनकी इच्छा की अवहेलना नहीं करेंगे।
काशी नरेश माता अंजाना के पास पहुँचते है और समस्त प्रसंग बताकर माता अंजाना से वचन ले लेते है। माता अंजाना काशी नरेश के प्राणों की रक्षा के लिए हनुमान को आदेश देती है। और माता के आदेश को वो मना कर नहीं सकते थे इसलिए उन्होने काशी नरेश को राम नाम का महामंत्र दिया और उनके सम्मुख राम के द्वारा भेजे जा रहे बाणों से बचाने के लिए खड़े हो गए।
अब भगवान श्री राम जो भी बान चलते वो प्रभु हनुमान जी को देखकर वापस लौट आते ऐसा देखकर प्रभु श्री राम आश्चर्यचकित हुए और और कारण को जानना चाहा और जब वो काशी नरेश शकुंत के पास पहुंचे तो देखा हनुमान जी के कारण उनके बान वापस आ जाते है।
प्रभु श्री राम ने हनुमान जी को हटने को कहा लेकिन हनुमान जी हटने को मना कर दिया उन्होने बोला प्रभु आप से ही सीखा है अपने वचन से नहीं हटना चाहिए भले ही प्राण त्यागना चाहिए और मैंने माता अंजना को काशी नरेश के प्राणों की रक्षा करने का वचन दे दिया है। अब भले ही आप मेरे प्राण ले ले लेकिन मई आगे से नहीं हटूँगा।
जब लगा कि प्रभु श्री राम हनुमान जी पर बान छोड़ देंगे तब महर्षि विश्वामित्र को एहसास हुआ कि उन्होने भूल कर दी श्री राम से वचन लेकर और फिर उन्होने श्री राम को अपने वचन से मुक्त किया और काशी नरेश शकुंत के अनचाहे अपराध से मुक्त कर दिया।
इस प्रकार से हमने देखा कि प्रभु और हमारे ईश का क्रोध भी हमारा बुरा नहीं कर सकता यदि हंसच्चे मन से प्रभु की भक्ति और उनका नाम जप करते है तो हमारा कोई भी बुरा नहीं कर सकता। साथ ही हनुमान जी ने जो किया उससे सिद्ध हो जाता है यदि हम अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार हो और सच का साथ न छोड़े जैसे हनुमान जी ने शकुंत के प्राणों की रक्षा की क्योंकि उन्होने जान कर यज्ञ भंग नहीं किया था, तो हमारा कुछ भी अनहित नहीं हो सकता है।
तो दोस्तों कैसा लगा आज का प्रसंग हमे अवश्य बताए। और ऐसे ही पौराणिक प्रेरणा दायक प्रसंगों और दार्शनिक विचारों के लिए हमारे इस पेज के साथ जुड़े रहे।
!!इति शुभम्य!!