वृन्दावन की गोपियों का भक्ति योग- दार्शनिक विवेचना

भारतीय सनातन धर्म परंपरा मे सभी का परम लक्ष्य होता है उस परम सत्ता की प्राप्ति करना और इसको प्राप्त करने के लिए कई तरह के मार्ग बताए गए है जिनमे सबसे कठिन मार्ग है हठ योग और सबसे आसान मार्ग है भक्ति योग बहकती योग को भी दो भागों मे बांटा गया है जिनमे प्रेम मार्ग का वर्णन सबसे सरलतम मार्ग बताया गया है।
आज हम बात करेंगे श्री कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम रूपी भक्ति योग जो की ज्ञान मार्ग को भी रह दिखा देता है। बात तब की है जब श्री कृष्ण मथुरा की ओर प्रस्थान करते है। और वृन्दावन वासियों को मालूम होता है कि अब श्री कृष्ण कभी भी वापस नहीं आएंगे सम्पूर्ण वृन्दावन वियोग मे समा जाता है। और श्री कृष्ण मथुरा जाकर कंस का वाढ करते है और वहीं से द्वारका पूरी मे अपनी नई राजधानी बसा लेते है। और वापस कभी भी वृन्दावन नहीं जाते है।
लेकिन वृन्दावन वासी और श्री कृष्ण दोनों एक दूसरे को बहुत याद करते है और वृन्दावन वासियों खासकर गोपियों के विरह को लेकर श्री कृष्ण भी बहुत चिंतित रहते है। श्री कृष्ण के परम सखा उद्धव जी जो कि वृहस्पति देव के शिष्य होते है और एक ब्रह्मज्ञानी होते है उन्हे श्री कृष्ण के चिंतित होने का पता चल जाता है और वो श्री कृष्ण से उनके चिंता का कारण पुछते है।
इसपर श्री कृष्ण गोपियों के वियोग के बारे मे बताते है इसपर उद्धव जी बताते है कि आपके प्रेम के विरह मे डूबे रहना उनके लिए सही नहीं है उन्हे उस पर ब्रह्म का ध्यान करना चाहिए मई स्वयं जाऊंगा वृन्दावन और उन्हे इस विरह से मुक्ति दिलाऊँगा। और उद्धव जी वृन्दावन की ओर प्रस्थान कर जाते है।
वृन्दावन पहुँचने के बाद वो वहाँ के वासियों को और खासकर गोपियों को ब्रह्म का ज्ञान देते है और उनसे कहते है की ये मोह माया बस एक भ्रम है और इससे आप को मुक्ति नहीं मिलेगी इसपर गोपियाँ बोलती है हे उद्धव भले ही ये आपको भ्रम लगता हो लेकिन हमे तो इस विरह से मुक्त होने की इच्छा नहीं हमारे लिए तो उस कृष्ण का वियोग भी अच्छा है इसके बदले हम उन्हे बूलकर खुश नहीं रह सकते है।
पुनः उद्धव जी बोलते है आप लोगो का ये जो प्रेम है ये केवल शारीरिक भाव है और शरीर का अस्तित्व कुछ भी नहीं बल्कि आत्मा के बाहव को समझो और आत्मा मे किसी भी प्रकार का भाव आ ही नहीं सकता क्योंकि आत्मा तो भाव हीन है इसपर गोपियाँ बोलती है कि आप जिस आत्मा की बात करते हो वो तो हमारे कृष्ण के साथ चला गया अब तो बस ये नश्वर शरीर ही बचा है ब इसको ये ज्ञान की बाते समझ नहीं आएंगी।
अंत मे गोपियाँ ऐसी बात उद्धव को बोलती है कि उनको अपनी हार माननी पड़ती है और प्रेम मार्ग की शक्ति का ज्ञान उन्हे हो जाता है। गोपियाँ बोलती है कि हे उद्धव यदि आप सच मे इतने बड़े ब्रह्म ज्ञानी है तो आप को ज्ञात हो कि आप उस पर ब्रह्म का संदेश लेकर आए हो और हमे बोल रहे हो कि उस पर ब्रह्म से अपने को मुक्त करो और आप के बताए ब्रह्म की खोज करो तो शायद आप भूल रहे है जगत के सभी जीव उसी ब्रह्म से जुड़ना चाहते है जिसके विरह से हमे आप मुक्त करने आएंगे। इस प्रकार से गोपियों ने अपने प्रेम रूपी भक्ति योग का महत्ता समझाई है।
द्वितीय प्रसंग-
इसके अलावा एक और प्रसंग प्रेम रूपी भक्ति का आता है। एक समय की बात है कि श्री कृष्ण की पत्नियों को गोपियों के प्रेम को महत्व देना उचित नहीं लगा और वे श्री कृष्ण से पूछ बैठती है क्या हमारे प्रेम से भी उनका प्रेम उच्च है जो आप उनके प्रेम को इतना महत्व देते है और इसपर श्री कृष्ण बोलते है कि इसका उत्तर आप को अवश्य मिलेगा। और एक दिन श्री कृष्ण सबसे बोलते है कि मेरा स्वास्थ्य अच्छा नहीं है और इसके लिए मुझे अपने पत्नियों का चरणामृत चाहिए उसके बाद ही हमारा स्वास्थ्य अच्छा हो सकता है। और इस संदेश को वो अपने पत्नियों के पास भेजते है।
संदेश को सुनने के बाद उनकी पत्नियाँ बहुत ही चिंतित हो जाती है लेकिन अपना चरणामृत देने से इंकार कर देती है क्योंकि इससे उन्हे पाप लाग्ने का दर रहता है। पुनः यही संदेश गोपियों के पास जाता है और उनसे कहा जाता है कि इससे आप लोगो को पाप लग सकता है लेकिन आप के चरणामृत से उनका स्वास्थ्य सही हो सकता है। और बिना कुछ सोचे गोपियाँ अपना चरनामृत देने को तैयार हो जाती है।
इस पूरे कथानक को श्री कृष्ण अपनी पत्नियों के साथ साझा करके बोलते है अपने को पाप लाग्ने के दर से इतर उन गोपियों ने मेरे स्वास्थ्य को महत्व दिया इसी लिए उनका प्रेम तुम्हारे प्रेम से उच्च है क्योंकि प्रेम मे किसी भी प्रकार के लाभ हानि के बारे मे नहीं सोचा जाता प्रेम तो बिना किसी छल कपट, लाभ हानि के होना चाहिए।
निष्कर्ष-
कलियुग मे भक्ति योग को सबसे सरल और प्रचलित रूप माना गया है भगवत प्राप्ति के लिए और इसमे भी ज्ञान योग से सरलतम मार्ग प्रेम का है जिसमे किसी भी नियम कानून के बगैर उस फार्म सत्ता से प्रेम किया जाता है। उनको अपने आप को समर्पित करके जीवन यापन करना होता है। प्रेम रूपी भक्ति योग किसी भी मायने मे किसी रोक टोक और नियम से बाध्य नहीं होता है। और अपने सम्पूर्ण सांसरिक कर्तव्यों का पालन करते हुए इसका अनुशरण किया जा सकता है।
||इति शुभम्य||