कोरोना भी हम भारतीयों को कुछ न सिखा पायी

कोरोना महामारी का असर इस धरती पर रहने वाले सभी जनों पर हुआ। इस महामारी के प्रकोप से कोई भी नही बच पाया फिर चाहे वो आर्थिक रूप से प्रभावित हुआ हो, शारीरिक या फिर मानसिक।
इस महामारी ने हम सभी के जीवन शैली को बदल कर रख दिया। हमारा दैनिक जीवन पूरी तरह से प्रभावित किया। न जाने कितने लोगों की जान गई। न जाने कितनों की नौकरियां चली गई। बहुत कुछ झेलना पड़ा महीनों तक घर के अंदर रहना पड़ा।
लेकिन हम भारतीय कुछ मामलों में बहुत ही ढीठ हैं। हमे कोई भी मुश्किल तभी तक होता है जब तक वो है। हमारी आदत है आग लगने पर कुंआ खोदने की। और जल्द ही सब कुछ भूल जाने का जैसे कुछ हुआ ही न हो।
अभी कोविड के दूसरी लहर में आक्सीजन दवाई और हॉस्पिटल को लेकर जो परेशानियां लोगो ने झेली वो सब हमने भुला दिया। हम बहुत ही जल्दी panic हो जाते है और बहुत ही जल्दी सब भुला देते है।
लेकिन क्या ये सही आदत है। अभी समाचारों में सुनने को मिल रहा है कई प्रमुख पर्यटन क्षेत्रों में लोगो की भीड़ आ गई है जहां लोग कोविड प्रोटोकॉल की अवहेलना कर रहे है। कोई मास्क नही लगा रहा तो बाजारों में भीड़ है।
दिल्ली के न जाने कितने प्रमुख बाजार खुलते ही बंद हो गए। पता नही हम कब सुधरेंगे। हम परेशानी के पुनः आने का या तो इंतजार कर रहे है या फिर भ्रम पाल रखे है की सब समाप्त हो गया।
हमे सोचना चाहिए कि हमारी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। नियमों का कड़ाई से पालन करे। पुराने ढर्रे पर आ जाने से संक्रमण का खतरा तो है ही साथ ही जिनकी आजीविका पुनः शुरू हुई है उन्हे फिर परेशानी झेलनी पड़ेगी।
कुछ भी न समझ आए तो अपने स्वास्थ्य अपने जनों का स्वास्थ्य इसकी चिंता करते हुए अपने स्वभाव में बदलाव करना चाहिए।
कोई भी महामारी कई वर्षों तक सक्रिय रहती है थोड़ी सी असावधानी होने पर हमे उससे खतरा है। तो फिर हमे इस बात का ख्याल रखना बहुत ही जरूरी है।
ये नही कहा जाता है कि आप घूमने फिरने न जाए लेकिन सावधानी और पूरी सुरक्षा का प्रयोग करें। भीड़ भाड़ से थोड़ा तो बचे।
कोरोना काल में शादी ब्याह में भी कम लोगो को निमंत्रण देने का आदेश है। भारतीय समुदाय इससे भी परेशान है। जबकि इस नियम से बहुत पुरानी कुरीति खत्म हो रही है। बेवजह का दिखावा और आडंबर खत्म हो सकता था लेकिन हम उसी में खुश थे।
इतनी बड़ी महामारी भी हमारे सोच और विचार में बदलाव नहीं ला सकी हमारी दिनचर्या पर कुछ दिन नियंत्रण तो रहा लेकिन बदल नही सका ये बड़ी विडंबना है।
उदाहरण के रूप मे हम भारतीय उस तरह जीते है कि जब तक हमारे टंकी मे पानी है हम दुनिया मे पानी की कमी को नहीं समझते है। समझने वाली बात ये है कि इस महामारी ने हमे एक नए और अच्छे स्वरूप मे जीवन जीने का तरीका सिखाया।
हमने अपने खान पान फिजूल खर्ची पर संयम पाया था साथ ही हमने अपने जीवन मे कुछ अच्छी आड़ते भी शुरू कर दी थी लेकिन जिस प्रकार से इसका प्रकोप कम होता गया हमने पुनः अपनी पुरानी स्थिति को धारण कर लिया।
जबकि अन्य देशों मे वहाँ के नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी को देखते हुए अपने जीवन मे हर संभव बदलाव कर रहे है।
बच्चों के स्कूल बंद है उनका बाहर निकालना बहुत ही असुरक्षित है। हमारा भी एक तरह से बाहर निकालना बहुत ही खतरनाक है लेकिन हम ये नहीं समझते की हमारी ज़िम्मेदारी कितनी है। अगर सरकार की तरफ से थोड़ी बहुत छुट दी गई है तो हमे उनके द्वारा बताए गए नियमों के तहत ही इस लाभ को अनुभव करना चाहिए।
समय हमेशा एक जैसा नहीं होता और इस समय को अच्छा और बुरा बनाने का काम भी हमारे क्रियाओं के अनुरूप भी होता है। इसलिए अभी भी हमे बाहर निकलते समय मास्क का ध्यान रखना चाहिए।
साथ ही जब आवश्यक हो तभी बाहर निकालना चाहिए। हमे ये नहीं सोचना चाहिए की हमे कुछ नहीं होगा शायद आपके घर मे रहने वाले बच्चे और बुजुर्ग उनको भी आप हानी पहुंचा सकते है।
धर्मशाला, शिमला इत्यादि मे अत्यधिक भीड़ और कोरोना गाइड लाइंस का पालन न करते हुए लोगो को देखकर स्वस्थ्य मंत्रालय ने भी चेतावनी दी है कि अगर ऐसी ही चलता रहा तो उन्हे पुनः कड़ाई करना पड़ेगा।
इसलिए हमे मिलकर नियमों का पालन करना चाहिए। लोगो को भी नियम के उल्लंघन करने पर उन्हे टोकना चाहिए। जिससे हम सच मे एक स्वस्थ समाज का आधार रख सकेगे और lockdown जैसी भयावह स्थिति से बचकर रह पाएंगे।
और दूसरों के द्वारा उड़ाए जा रहे हमारे उपहास से भी बच पाएंगे तो एक सच्चे भारतीय बने और संयम एवं सावधानी के साथ अपने दिनचर्या मे थोड़ा बहुत परिवर्तन करके अपना और अपनों के स्वस्थ जीवन की गाड़ी को बिना रुकावट आगे बढ़ाएँ।
!!इति शुभम्य!!
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