भगवान को भोग लगाने के क्या है नियम

सनातन धर्म परंपरा मे ईश्वर आराधना के कई तरीके अथवा मार्ग बताए गए है। जिनमे तप, हवन, मंत्र, भक्ति और प्रेम इत्यादि कई मार्ग बताए गए है। जिनमे भक्ति और प्रेम मार्ग मे हम ईश्वर को अपने प्रीत मीट के रूप मे मानते है और उनकी सेवा भाव हम पूर्ण रूप से मानव दिनचर्या के रूप मे करते है जिसमे ईश्वर का श्रिंगर उनकी आरती और उनके भोग का प्रावधान है।
और समाज के ज़्यादातर लोग इसी मार्ग का पालन ईश्वर आराधना के लिए करते है। क्योंकि ईश्वर प्राप्ति की ये सबसे आसान और सुगम राह बताई गई है। तो प्रश्न ये उठता है कि जब हम अपने इष्ट को भोग लगते है तो उसके क्या नियम होने चाहिए और किस विधि के अनुरूप ईश्वर को भोग लगाना चाहिए। तो इसका जवाब मै कुछ प्रसंगों के आधार पर देना चाहूँगा।
सबसे प्रथम जब माता सीता की खोज करते हुए भगवान श्री राम जंगल मे भटक रहे होते है तो वो माता शबरी के द्वार पहुँचते है अपने इष्ट को देखकर माता शबरी प्रफुल्लित हो उठती है और उनके सेवा सत्कार के लिए उन्हे अपने मुख से जूठा किया हुआ बेर उन्हे देती है और प्रभु श्री राम बहुत ही प्रेम के साथ उनके उस जूठे बेर को बड़े ही प्रेम से खाते है।
दूसरा महाभारत काल मे महाराज विदुर की और उनकी पत्नी सुलभा या कुछ लोग उन्हे विदूरनी कहते है, दोनों की भगवान कृष्ण की बहुत ही बड़े भक्त होते है एक बार भगवान श्री कृष्ण उनके आश्रम पर पहुँचते है और प्रेम मे इतना मग्न होने के कारण विदुर की पत्नी उन्हे केले की जगह पर केले का छिलका ही उन्हे प्रेम से भोग लगाने को अर्पित करती है। और भगवान श्र्रि कृष्ण भी बड़े प्रेम से उसे खा लेते है।
तीसरा प्रसंग है जब माता सीता हनुमान जी महाराज को भोजन करने को कहती है। और पूरा रसोई का समाप्त करने के बाद भी हनुमान की क्षुदा तृप्त नहीं होती है उनकी भूख खत्म ही नहीं होती और जब ये समस्या माता सीता प्रभु श्री राम को बताती है तो प्रभु श्री राम उन्हे हनुमान जी को एक तुलसी का पत्ता देने को बोलते है। और एक तुलसी का पत्ता ग्रहण करने के उपरांत हनुमान जी का भूख समाप्त हो जाता है।
और चौथा प्रसंग जब धन्ना जाट जैसे परम भक्त को उसके गुरु बोलकर जाते है कि बगैर भगवान को भोजन का भोग लगाए स्वयं भोजन नहीं करना तो धन्ना जाट के हठ को मानते हुए स्वयं भगवान को भोग ग्रहण करने आना होता है। गुरु के वापस आने पर जब धन्ना जाट बोलता है कि उसने सच मे भगवाना को भोजन खिलाया तो एक बारगी तो उसके गुरु भी इस बात को नहीं मानते है।
इन उपरोक्त चार प्रसंगों से हम भगवान को भोग लागने के शाश्वत नियम को जान सकते है। और वो है भगवान किसी विधि विधान किसी प्रकार के पकवान इत्यादि के भूखे नहीं बल्कि वो अपने भक्त के श्रद्धा भाव और प्रेम के भूखे है। उनके लिए न तो कोई भोग जूठा है और न ही छप्पन भोग उन्हे तो बस उस भक्त की तलाश है जो जो सच्ची भावना और भक्ति के साथ उनको अपना भोग रूपी प्रेम अर्पण करे।
फिर चाहे कोई उन्हे केले का छिलका खिलाये या फिर कोई झुते बेर हनुमान जी के प्रसंग से सिद्ध होता है कि भगवान किसी भोग से तृप्त नहीं होते बल्कि सच्ची भक्ति और प्रेम से यदि उन्हे कोई एक तुलसी का पत्ता भी दे तो उनको तृप्ति हो जाती है। इसलिए भगवान को केवल और केवल प्रेम से सिद्ध किया जा सकता है।
चौथा धन्ना जाट की कहानी को देखे तो भगवान वेदों के ज्ञाता व्यक्ति या फिर जो सारे पूजन हेतु मंत्र क्रिया इत्यादि का प्रयोग करे उसके भोग को भले ही ग्रहण न करे बल्कि जो उन्हे प्रेम से भक्ति भाव पूरी श्रद्धा से बुलाएगा उसके भोग को ग्रहण करते है। यहाँ यही हुआ धन्ना जाट के गुरु जो कि अपना सम्पूर्ण जीवन जप तप मे लगा दिया लेकिन उनको भगवान के दर्शन नहीं हुए और सच्चे मन से एक दिन मे धन्ना जात ने ईश्वर के दर्शन भी किए और उन्हे भोजन का भोग भी दिया।
तो जब भी आप ईश्वर आराधना करे यहाँ उन्हे भोग प्रसाद प्रदान करे तो केवल और केवल आपका मन पवित्र होना चाहिए और अपनी क्षमता और श्रद्धा भक्ति से आप जो भी ईश्वर को अर्पित करेंगे वो ही ईश्वर ग्रहण करेंगे।
!!इति शुभम्य!!